राजनीति का वोट
राजनीति का वोट
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राजनीति, वोट मांगे तुम बहुत अपने दुकानों के लिए।
अब उबरकर स्वार्थता से बस तुम्हें राष्ट्रवादी होना चाहिए।
कौन पत्थर दे कुचल सिर,क्या पता दूसरा कोई रीढ़ ही।
इसलिए अब वोट का अधिकार मेरे हाथ होना चाहिए।
जाति से प्रेरित रहा जो राजनीति क्यों नहीं अपराध हो?
यह प्रजा का तंत्र है सो पीढ़िगत सत्ता उजड़ना चाहिए।
उस क्षितिज पर सूर्य सा कोई ‘लाल’ बैठा झांकता।
सूर्य का आधिपत्य अब इस राष्ट्र में बिलकुल चमकना चाहिए।
सूर्य का तन सूर्य का मन सौम्य है और साम्य है।
साम्यवादी क्यों नहीं अब कर्म हर दिन-रात होना चाहिए।
तुम महल में क्यों मैं झुग्गी-झोपड़ी से घर में क्यों?
वोट मेरा, हक है मेरा,राजनीति छीन ले न जाग जाना चाहिए।
यह धरा है जो उगलता सब हैं उसके भागीदार।
तेरे हक से मेरे हक में न झूठ, भ्रष्टाचार होना चाहिए।
राजनीति रट रहा था भाग्य मेरा है विपन्न क्षीण,दीन।
है असंभव बदल देना इसलिये इस में ही जीना और मरना चाहिए।
किन्तु,जो आया हमारे हिस्से का ले रौशनी की तीलियाँ।
आ उसे चुन सूर्य सा उसको उजाले में बदलना चाहिए।
वह तो इतना कर गया कि शब्द के माने बदलने हैं लगे।
वह असंभव शब्द अब हमें भी संभव सा लगना चाहिए।
तथ्य किस पर संगठित हों आज भी सब सोचते।
क्यों न मानवता का हो पथ और मंजिल यह लगना चाहिए।
जो कि वसुधा को कुटुम्बी जानता,पहचानता ईश की तरह वह।
सन्यास सा सब त्याग कर जो खड़ा हमको भी वैसा ही लगना चाहिए।
वह तो हर आतंक का रिपु ‘अर्थ’ का हो,बुद्धि का हो,शक्ति का हो।
देखकर उसको हमारा मनोबल व आत्मबल बांसों उछलना चाहिए।
आ उसे षड्यंत्र हर से रोकने वोट को दें राष्ट्रवादी चेहरा।
जब उठाएं हाथ उसके ही लिए वह हमारा अक्स होना चाहिए।
हम यहाँ संकल्प लेने हैं खड़े वह हमारे नेतृत्व को दे रास्ता।
मुट्ठियों को भींच कर आशमाँ में जय कहें और साथ चलना चाहिए।