राजनीति का नाटक
क्या खूब है राजनीति का ये नाटक !
देश की जनता महंगाई से है त्रस्त !
शासन अपनी उपलब्धियों के बखान में है मस्त !
कभी राज्य, कभी केंद्र, मीडिया में
अपनी-अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं !
अपने-अपने तरीके से जनता को बहका कर
अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं !
धर्म की राजनीति में जनता को
इतिहास का पाठ पढ़ाकर ,
वर्तमान में अपनी कुर्सी पक्की कर रहे हैं !
कुछ तो नफरत के बाजार में
मोहब्बत की दुकान खोलकर ,
देश को जोड़ने निकल पड़े हैं !
कोई उनसे ये पूछे कि नफरत किसने फैलाई है ?
कोई उनसे पूछे कि ये आग किसने लगाई है ?
ये जब चाहें दोस्त को दुश्मन बना दें !
अपने स्वार्थ के लिए दुश्मन को भी गले लगा लें !
नफ़रत और मोहब्ब़त इनके लिए
सियासी दांव पेंच हैं !
संवेदनशीलता एवं सद्भावना के
घड़ियाली आंसू इनके लिए खेल हैं !
न जाने कब जनता इनको समझ पाएगी ?
और इनके फैलाए भ्रमजाल से मुक्त हो पाएगी ।