राजनीतिक रोटियाँ
दोस्तों, बहुत समय के अन्तराल के बाद एक बार फिर से आपके सन्मुख उपस्थित हूँ, हृदयाउदगार कलमबद्ध कर । आपका आशीर्वाद प्राप्त हो:-
दूरबीन ले क्यों ढूंढ़ते,
अपने हित की आग,
राजनीति की रोटियाँ,
पायें जिससे ताप ।।
पायें आग ताप की,
सिके बस इनकी रोटी,
क्या वीरगति सैनिक,
क्या गरीब की रोटी ।।?
कितनी भी हो विपदा,
धर्म-कि विरोध करेंगे,
कितनी भी सीधी बात,
देश का अहित कहेंगे ।।
हे! रक्तपिपासु जीव,
घृणा के ठेकेदार,
देश, माटी क्या समझें,
देश के जो हों गद्दार ।।?
गर सच्चा हो विरोध,
तो लोकतंत्र जीतेगा,
अन्धविरोध करोगे,
देश नहीँ जीतेगा ।।
देश नहीँ यदि जीता,
तो हारोगे तुम भी,
उजाले को हराकर,
नाचेगा तब तम भी ।।?
कभी उतार कर फेंको,
निज स्वार्थ के सेहरे,
कभी लगाकर देखो,
देश रक्षा हित पहरे ।।
छट जायेगा तम ना होंगे,
विपत्ति के अभ्र घनेरे,
साथ लड़ेंगे छोड़ निज,
स्वार्थ के कूप सब गहरे ।।?
¤ नील पदम् ¤?????
08-05-2020