राखी की सौगंध
राखी की सौगंध
“नहीं भैया, मुझे इस बार राखी में आपसे गिफ्ट नहीं चाहिए।” चौदह वर्षीया बहन ने अपने अठारह वर्षीय भैया से हाथ जोड़कर कहा।
“क्या कहा ? गिफ्ट नहीं चाहिए ? मुझसे नाराज हो ? क्या चाहिए बोलो ?” भैया ने पूछा।
“मुझे आपका एक प्रॉमिस चाहिए।” गुड़िया ने मासूमियत से कहा।
“प्रॉमिस ! कैसा प्रॉमिस गुड़िया ? बोलो तो सही। मेरी नन्हीं-सी गुड़िया के लिए हमारी जान तक हाजिर है।” भैया ने बहुत ही प्यार से कहा।
“शुभ-शुभ बोलिए भैया। जान जाए दुश्मनों की। आपको मेरी उमर लग जाए। भैया, आप हर बार रक्षाबंधन में मेरी रक्षा और देखभाल की प्रॉमिस करने के साथ-साथ सुंदर-सा गिफ्ट भी देते हैं। आप मेरी बहुत केयर भी करते हैं। रक्षाबंधन के बाद भी अक्सर मुझे कुछ न कुछ गिफ्ट देते हैं। आई एम प्राऊड ऑफ यू भैया। आपके जैसा भाई पाकर मैं खुद को बहुत ही भाग्यशाली समझती हूँ।” गुड़िया बहुत भावुक हो गई थी।
“देखो गुड़िया, तुम रोना नहीं, बिल्कुल नहीं रोना। तुम्हें तो पता ही है न कि मुझे आँसू बिल्कुल भी पसंद नहीं, वह भी अपनी गुड़िया की आँखों में। बोलो, क्या प्रॉमिस चाहिए मुझसे ?” भैया ने गुड़िया के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
“भैया प्रॉमिस कीजिए कि जैसे आप मेरी और मम्मी की केयर करते हैं, इज्जत करते हैं, आप वैसी ही अन्य सभी लड़कियों और महिलाओं की भी इज्जत करेंगे। कभी किसी भी लड़की या महिला को परेशान नहीं करेंगे।” गुड़िया ने आग्रह किया।
“बस, इत्ती-सी बात के लिए तुम्हारी आँखों में आँसू। मैं प्रॉमिस करता हूँ गुड़िया कि जैसा तुम चाहती हो, मैं वैसा ही करूँगा। अब तो खुश। चलो, रखो अपना ये गिफ्ट।” भैया ने गिफ्ट के पैकेट गुड़िया को देते हुए कहा।
“देखा आपने मम्मी-पापा। मेरे भैया दुनिया के सबसे अच्छे भैया हैं।” गुड़िया चहकते हुए मम्मी-पापा से बोली।
मम्मी-पापा ने संतुष्ट भाव से एक-दूसरे की ओर देखते हुए सहमति में सिर हिलाई।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़