रहो कृष्ण की ओट
रहो कृष्ण की ओट
जीवन मे जो भी मिला,
निज कर्मों का खेल।
जो किया सो पाया नर ने,
भले बुरे का मेल।
जीवन में जो भी मिले
सीखो उसे पचाना।
सबका यहाँ हिसाब है,
न करिये मनमाना।
भजन पचाया न अगर,
अंदर सुख हो बंद।
भोजन पचे न पेट में
देह की गति हो मंद।
पैसा पचे न यदि कहीं,
मन में बढ़े दिखावा।
बात पचाये न पचे,
चुगली निंदा आवा।
प्रशंसा यदि सिर चढे,
तो बढ़ जाये घमंड।
राज पचाये न पचे,
नर होए उद्दण्ड।
दुख कहीं ज्यादा होय तो,
बढ़ती बहुत निराशा।
सुख पचाये न पचे,
पाप होय बेतहाशा।
सोच समझ जीवन जिओ,
रहो कृष्ण की ओट।
यदि कहीं चले कुमार्ग पर,
पड़े काल की चोट।