चुनावों का चाव
मेरे चचा सयाने को भी
चुनावों का चाव है।
जब बात हो वोटर की
देते मूंछों को ताव है।।
ताकत जाने चचा सयाने
मत ला सके जो बदलाव हैं।
चुनाव पर लोकतंत्र खड़ा
वोटिंग ही उसके पाॅव है।।
चुनाव बढ़ाता लोकतंत्र
न होने दे कोई ठहराव है।
एक लोकतंत्र ही है जो
समझे सबका मत-सुझाव है।।
कौन पार्टी जीतेगी, कहते
सभी ने तो लगाए दाॅव है।
कभी नाॅव पे गाड़ी
तो कभी गाड़ी पे नाॅव है।।
दें वोट चचा सयाने मर्जी से
ना किसी के डर-दबाव से।
कहते वोटिंग सबको करनी
चाहे हो शहर चाहे गाॅव से।।
लेना है सबक हमको
वो गुलामी के घाव से।
बना के रखनी आजादी
देश बचाना बिखराव से।।
मिले राहत जन-जन को
सत्ता की छांव से।।
सच्ची देशसेवा होती है
लोकतंत्र में लगाव से।
कहते है चचा सयाने
मूंछों में देकर ताव से।।
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मौलिक एवं स्वरचित: कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या -०१: १०,मई २०२४-©जीवनसवारो