रहोगे दिल के मेहमान
**रहोगे दिल के मेहमान**
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जब .तक रहेगी तन में जान
तुम रहोगे दिल के मेहमान
अरसे से तुम हो आस पास
बेशक अलग अलग पहचान
अलग अलग तन के मालिक
दो जिस्म हो जाएं एक जान
जब होगी मंजिल घर द्वार
छू लेंगे हम दोनों आसमान
मत जाना तुम नजरों से दूर
यही होगा मुझ पर एहसान
जब हो जाएं मेरी आँखे बंद
तेरे आगोश में जाएं मेरे प्राण
मनसीरत संग है प्रीत लगाई
उपासना का हुआ कल्याण
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)