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15 Feb 2020 · 1 min read

रहस्य दर्शन

चुन चुनकर
बुने बुनाये
खुद ही पैदा कर
डोर लिये
खुद के हाथ
पारस भी
हंसा जहां तक
सबकुछ खुद ही
व्यवाहरिक
विध्वंसक
रचनात्मक
प्रकृति है
अस्तित्व है
गतिविधियाँ विरासत
रहस्य ही खुदी है.
बदनामी तक.
मन ही समझा
रुठे जहां तक
सुलह यही
जिसने भी खोजा
जहां तक.
उसने पाया है.
खुदा गंवाने तक

वैद्य महेन्द्र सिंह हंस

Language: Hindi
3 Likes · 498 Views
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