रहस्य दर्शन
चुन चुनकर
बुने बुनाये
खुद ही पैदा कर
डोर लिये
खुद के हाथ
पारस भी
हंसा जहां तक
सबकुछ खुद ही
व्यवाहरिक
विध्वंसक
रचनात्मक
प्रकृति है
अस्तित्व है
गतिविधियाँ विरासत
रहस्य ही खुदी है.
बदनामी तक.
मन ही समझा
रुठे जहां तक
सुलह यही
जिसने भी खोजा
जहां तक.
उसने पाया है.
खुदा गंवाने तक
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस