रहमतो की बरसात
बरस आती है जब बरसात,
बहुत कुछ लाती है अपने साथ
हर उमर मैं अलग कहानी कह जाती हैं ये बरसात….
बचपन मे स्कूल से घर लोटते वक़्त
एक दुसरे को देकर मात,
भीगते हुए घर पहुचते थे
तब माँ कहती थी उफ ये बरसात….
युवा हुए तो ख्याल आता था उनका
जब भी होती थी बरसात,
वो साथ मे भूट्टे खाना और हो जाना आधी रात
मन से बस यही आवाज आती थी उफ ये बरसात…
तब भी हुए ये बरसात जब लिए उनके साथ फेरे सात,
वो कहते सुनती हो जी
ज़रा पकोडे चाय ला दो हो रही है बरसात,
आज मन ही मन कहती हूँ हाये ये बरसात….
अभी कुछ और दौर चल रहा है ज़िसमे चाहिए तो है बरसात,
ज़िसमे घुला हुआ हो इंसानियत का सेनेटाइज़र
जो दे सभी बुराइयो को मात,
और तब मैं नही हम सब कहेंगे
रहमतो की बरसात!
-सुरभी