रस्म ए उल्फत
कब तलक मरते रहे तेरी अदाओं पर हम ,
अब तो जान चुके है तेरी जफ़ाओं को हम,
किस दो रहे पर लाकर खड़ा किया तूने जिंदगी !
रस्म ए उल्फत तुझसे फिर भी निभा रहे हैं ।
कब तलक मरते रहे तेरी अदाओं पर हम ,
अब तो जान चुके है तेरी जफ़ाओं को हम,
किस दो रहे पर लाकर खड़ा किया तूने जिंदगी !
रस्म ए उल्फत तुझसे फिर भी निभा रहे हैं ।