रमणीय प्रेयसी
#दिनांक:-25/9/2023
#शीर्षक:-रमणीय प्रेयसी
आज दिल से एक आवाज आयी ,
रूबरू हुईं थी मेरी ही परछाई !
मत कर तुलना अपनी प्रेम का ,
ताकतवरों से ,
आत्मा तक टूटकर बिखर जायेगा ,
सफाई में समय बर्बाद मत कर ,
जिसको जो पसंद, वही सुनना चाहेगा ।
बहुत किया पीछा ,
अब पीछे हट जा ,
सारे गमों को पानी के साथ गटक जा ,
दर-बदर भटकने से अच्छा तू मर जा।
खुद को बेइन्तहा प्यार कर ,
इकरार बार-बार कर ,
संशय नहीं, विश्वास कर ,
सवाल नहीं, आत्मसात् कर ।
हर नजर के गुनाहगार हैं हम,
बस अपनी नजर के बेगुनाहगार हैं हम ,
कदम-दर-कदम मंजिल पाने की जिद थी ,
पर क्या हुआ एक ने दिल तोड़ दिया तो ,
करोड़ों दिलों की ‘रमणीय प्रेयसी’ हैं हम |
रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई