रथ निकला नन्द दुलारे की
रथ निकला नन्द दुलारे की
धूम मची है झूम उठी है
धरती गगन सितारे भी
धर्म का रथ सज-धज कर निकला
अपने नन्द दुलारे की.
बलदाऊ के संग में बैठी
बहन सुभद्रा प्यारी भी
हर्षित जन है पुलकित मन है
बीती रात अंधियारी की.
मंद-मंद होठों पर हंसी है
जैसे खिलती कुसुम-कली की
एक झलक पा लेने भर की
नयन झांकती गली-गली की.
स्वागत करने को है आतुर
प्रकृति कृष्ण मुरारी की
भक्तों के दुःख हरनेवाले
गोवर्धन गिरधारी की.
नभ से सुमन बरसता जैसे
वैसी बरस रही है फुहार
धरती का मुख चूम-चूम कर
बह रही शीतल ये बयार.
श्रद्धा-भरी ये ऐसा क्षण है
पुलक-भरी भक्ति सबकी
आस्था में इतनी शक्ति है
प्यास बुझी है दृष्टि की.
देश की पावन माटी अपनी
जिसकी संस्कृति है अपार
जन-जन में उत्साह जगाने
रथ निकला है अबकी बार.
भारती दास ✍️