रति मति प्रेरक पैमाना हो
रति मति प्रेरक पैमाना हो
मय युक्त लवों पर मुक्त तबत्सुम, उभरे उरोज मादक थिरकन कातिल चितवन,
धुति हो गति हो चपला हो या रति मति प्रेरक पैमाना हो…
अनुपम यौवन का चरमोत्कर्ष, वाणी से रोम रोम झंकृत, पैरों से पायल की खन खन या रंभा की स्वर्गिक थिरकन,
गर अधर छुअन हो जाए शूलभ तो सागर सी मयखाना हो….
रवि अस्ताञ्चल को गतिरत, तब होती हो दर्शित, और पूर्ण शशि नभ में प्रकटत, अंतर को नैना हैं मटकत,
वा पर तो घिरी कालिमा है तुम निष्कलंक धवल उज्ज्वल
लगती हो अधखिली कुमुदनी, नहीं मानवी, रव का दुर्लभ नज़राना हो….
धुति हो गति हो चपला हो या रति मति प्रेरक पैमाना हो……
भारतेंद्र शर्मा (भारत)
धौलपुर