रक्षा सूत्र से रक्षा बंधन तक, का पड़ाव!!
कहते हैं पहली बार,
माता लक्ष्मी ने,
राजा बलि को,
रक्षा सूत्र बांध कर,
इसका सूत्र पात किया था,
चुंकि,श्री हरि विष्णु जी को,
राजा बलि ने अपने महल में,
अपना द्वारपाल बना कर रखा था,
यह भी एक संयोग बना,
जब नारायण हरि ने,
बामन रुप धर कर,
बलि से तीन पग भूमि का,
बचन लिया था,
और फिर, विराट रूप धर कर,
दो ही पग में, स्वर्ग से लेकर,
मृत्यु लोक तक नाप लिया था,
किन्तु श्री हरि ने राजा बलि की,
दानवीरता से खुश होकर,
वरदान मांगने को कहा,
तब बलि ने,प्रभू से कहा,
मुझे अपने चरणों में स्थान दीजिए,
और हर पल हर क्षण,
मेरे ही सम्मुख रहिए,
इस प्रकार जिस तरह नारायण ने उसको छला था,
वैसे ही उसने भी हरि को, अपने समक्ष रहने को विवश किया था,
और जब श्री हरि विष्णु, बैकुंठ धाम नहीं पधारे,
तब माता लक्ष्मी को उनकी चिंता सताए,
उन्होंने नारद से प्रभु के बारे में जाना,
एवं निश्चय कर यह ठाना,
नारायण को बलि से मुक्त कराना है,
इस लिए पाताल लोक में आना है,
वहां पर वह एक अबला नारी बन कर पहुंची,
और विलाप कर अपने पति को ढूंढने का,
उपाय करने लगी,
तब सैनिकों ने उसे महाराज तक पहुंचाया,
और उसके रुदन का कारण बताया,
माता ने श्री हरि को, द्वारपाल के रूप में देख लिया,
और राजा से अनुनय करते हुए कहा,
महाराज मेरा कोई भाई नहीं है,
जो मेरी सहायता कर सके,
और मेरे पति को ढूंढने में मदद कर सके,
राजा बलि ने उन्हें अपनी बहन बना दिया,
और फिर सहायता मांगने को कहा,
माता ने भी महाराज से संकल्प करा दिया,
और फिर द्वारपाल के रूप में, विराजमान,
श्री हरि को अपने पति के रूप में मांग लिया,
तब राजा बलि ने यह कहा,
तुम तो दोनों ही छलिया निकले,
एक ने राजपाट ठग दिया,
और दूसरे ने मेरा सुख चैन लुट लिया,
तब माता ने बलि को कहा,
नहीं भया आज से लोग तुम्हें मेरा भाई मानेंगे,
और इस रक्षा सूत्र को, रक्षाबंधन के तौर पर जानेंगे,
हर बहन, भाई को एक धागे से बांध कर रक्षा का वचन लेंगे,
और हर भाई,बहन को उसकी रक्षा का वचन देकर इसे निभाएंगे,
और फिर इस सूत्र की ब्याख्या भी की,
“येन बद्धो बलि राजा, दान वेन्द्रो महाबल,
तेन त्वाम प्रपद्दये,रक्षे माचल-माचल।
इस प्रकार इस त्योहार का उदय हुआ,
और द्वापर में, द्रौपदी ने श्री कृष्ण को,
ऐसे ही रक्षा सूत्र बांध कर,भाई माना,
और श्री कृष्ण ने, चीरहरण में चीर बढा कर,
अपने भाई होने का निर्वहन किया,
कहा जाता है कि, भारत में एक राज्य की रानी ने,
आक्रांता मुगलों से अपने राज्य की रक्षा के लिए,
एक धागा,भेज कर, पत्र में अपने राज्य की सुरक्षा का वचन मांगा,
और वह भी, एक मुस्लिम बादशाह हुमायूं को,भाई बना कर,
आज यह त्यौहार हर घर में मनाया जाता है,
और हर बहन-अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर,
अपने भाई को दीर्घायु होने की कामना करते हुए,
अपनी रक्षा का वचन मांगती है,
यूं तो अब इसके स्वरुप में परिवर्तन आया है,
भाईयों ने रक्षा सूत्र बांध कर, उपहार देने का क्रम चलाया है,
फिर भी लोग इसे जाति-धर्म से हट कर मनाते हैं,
हर धर्म के लोग, किसी को भी भाई बहन बना सकते हैं,
बस आवश्यकता है रिस्तों को ईमानदारी से निभाने की,
क्योंकि,रिस्तों को कत्ल करना आज सबसे बड़ी बिमारी है।।