रक्षा बन्धन
रक्षा बन्धन
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
जिस रक्षासूत्र को महान शक्तिशाली राजा इन्द्र को बाँधा गया था और उन्हें बल प्राप्त होकर वे युद्ध में विजयी हुए थे उसी रक्षासूत्र में हम तुम्हें बाँधते हैं | तुम अपने संकल्पों में अडिग रहना और कभी अपने पथ से विचलित न होना | जी हाँ, आज बीस अगस्त है… और परसों यानी बाईस अगस्त को भाई बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक रक्षा बन्धन का पावन पर्व है… सर्व प्रथम रक्षा बन्धन की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबन्धनमाचरेत |
स सर्वदोष रहित, सुखी सम्वतसरे भवेत् ||
अर्थात्.. इस प्रकार विधिपूर्वक जिसे रक्षा सूत्र बाँधा जाता है वह समस्त विकारों से दूर रहता हुआ जीवन पर्यन्त सुख का भोग करता है…
रविवार बाईस अगस्त को रक्षा बन्धन है ये हम सभी जानते हैं… पूर्णिमा तिथि का आगमन शनिवार इक्कीस सात बजे के लगभग विष्टि (भद्रा) करण और शोभन योग में होगा जो बाईस अगस्त को सायं साढ़े पाँच बजे तक रहेगी… इस दिन प्रातः छह बजकर चौदह मिनट पर भद्रा भी समाप्त हो जाएगी | इस प्रकार रविवार बाईस अगस्त को प्रातःकाल 6:15 से लेकर सायं साढ़े पाँच बजे तक पूरा दिन ही रक्षा बन्धन के लिए भद्रा मुक्त शुभ मुहूर्त रहेगा… साथ ही प्रातः पाँच बजकर चौवन मिनट पर सूर्योदय भी शोभन योग में हो रहा है और चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र में चल रहा है… जो किसी भी प्रकार के शुभ और माँगलिक कार्य के लिए उत्तम योग बन रहा है… तो सभी को रक्षा बन्धन की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…
क्या है कि रक्षा बन्धन में मूलतः दो भावनाएँ निहित रहती हैं… जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा गया है उसके कल्याण की कामना… और दूसरी, जिसने वह रक्षा सूत्र बाँधा है उसके प्रति स्नेह… सम्मान और प्रेम की भावना… क्योंकि मूलतः रक्षा सूत्र अर्थात मौली या आम भाषा में जिसे कलावा भी कहा जाता है – उसमें – तीन धागे होते हैं जिनमें शक्ति के तीनों रूपों – दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास माना जाता है… इस प्रकार रक्षा बन्धन वास्तव में स्नेह शान्ति ज्ञान विज्ञान और रक्षा का बन्धन है… कालान्तर में इसी रक्षा सूत्र को एक छोटे से पीले वस्त्र में – जो सूती ऊनी अथवा रेशमी कैसा भी हो सकता है… दूर्वा, केसर अथवा हल्दी, हल्दी, चन्दन और सरसों के दानों को एक मौली से बाँधकर राखी का रूप प्रदान किया गया…
राखी में बंधी हुई इन समस्त वस्तुओं का भी बहुत महत्त्व है… जिनकी व्याख्या हम इस प्रकार कर सकते हैं… सबसे पहले दूर्वा – जिसका अर्थ है कि जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह सहस्रों की संख्या में फैल जाता है… उसी प्रकार जिस व्यक्ति को भी रक्षा सूत्र बाँधा जा रहा है उसके जीवन में सुखों और सद्गुणों का विकास होता रहे… अक्षत – अर्थात जिस प्रकार अक्षत पूर्ण होता है उसी प्रकार वह व्यक्ति भी जीवन में पूर्ण रहे अर्थात सफलता प्राप्त करता रहे… केसर अथवा हल्दी अध्यात्म तेज भक्ति ज्ञान तथा सौभाग्य के प्रतीक माने जाते हैं… चन्दन का गुण है शीतलता प्रदान करना तथा सदा सुगन्धि प्रसारित करते रहना ताकि किसी भी प्रकार के तनावों से बचा जा सके और व्यक्ति के गुणों की सुगन्धि दूर दूर तक प्रसारित हो… सरसों तीक्ष्ण होती है… अर्थात मनुष्य दुर्गुणों को दूर करने की प्रक्रिया में तथा शत्रुओं को परास्त करने की दिशा में तीक्ष्ण बना रहे…
कहने का अभिप्राय यही है कि समस्त के कल्याण की भावना इस सूत्र में निहित है… यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि सूत्र का अर्थ धागा भी हो सकता है और सूत्र का अर्थ कोई सिद्धान्त अथवा मन्त्र भी हो सकता है… हमारे विचार से पुराणों में जिस रक्षा सूत्र को बाँधने की बात कही गई है उसका अर्थ धागे से न होकर किसी मन्त्र अथवा किसी ऐसे सूत्र से भी हो सकता है जिसके विषय में केवल बाँधने वाले और बंधवाने वाले को ही पता हो… कालान्तर में इसी मन्त्र के प्रतीक स्वरूप धागे का उपयोग किया जाने लगा होगा…
बहरहाल, रक्षा बन्धन के सन्दर्भ अनेकों पौराणिक और ऐतिहासिक आख्यान उपलब्ध हैं… अनेक विचारधाराएँ विद्यमान हैं… जैसे भारत में जिस समय गुरुकुल प्रणाली थी और शिष्य गुरु के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे उस समय अध्ययन के सम्पन्न हो जाने पर शिष्य गुरु से आशीर्वाद लेने के लिये उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बाँधते थे तो गुरु इस आशय से शिष्य के हाथ में इस सूत्र को बाँधते थे कि उन्होंने गुरु से जो ज्ञान प्राप्त किया है सामाजिक जीवन में उस ज्ञान का वे सदुपयोग करें… ताकि गुरुओं का मस्तक गर्व से ऊँचा रहे… आज भी इस परम्परा का निर्वाह धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है… पुत्री भी पिता को राखी बांधती है कई जगहों पर पिता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये… आजकल नेताओं को भी राखी बाँधने की प्रथा चल निकली है… वन संरक्षण के लिये वृक्षों को भी राखी बाँधी जाती है… १९४७ के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भी जन जागरण के लिये राखी को माध्यम बनाया गया था… गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बंग-भंग का विरोध करते समय इस पर्व को बंगाल के निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता के प्रतीक के रूप में इसका राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया था… इस पर्व को श्रावणी भी कहते हैं क्योंकि इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपाकर्म होता है… इस विषय पर विस्तृत लेख हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है…
भाई बहन के बालसुलभ प्रेम के साथ ही स्नेह और सौहार्द के पर्व रक्षा बन्धन की सभी को अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… इस आशा और विश्वास के साथ कि हम सभी न केवल परस्पर प्रेम और सौहार्द के साथ रहें, बल्कि समस्त जीवों और समूची प्रकृति के साथ भी स्नेह और सौहार्द का व्यवहार बनाए रखें ताकि रक्षा बन्धन केवल भाई बहन के प्रेम तक ही सीमित होकर न रह जाए, बल्कि जीव मात्र के प्रति – प्रकृति के कण कण के प्रति प्रेम का पर्व बन जाए… कात्यायनी…