“रक्षा कवच”
सत्या के अति इमानदार पिता यूँ तो
सरकारी महकमें में स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर कार्यरत थे पर सत्या को माँ के उदर में स्थापित हुए अभी कुछ पंद्रह हफ्ते ही हुए थे कि पिता अचानक एक दिन ईश्वर को प्यारे हो गए,पीछे छूट गए अनपढ़,भोली उन्नत होते उदर के साथ माँ की उँगली थामे सात वर्ष की जीतो ,अनाश्रय और गरीबी।अब तो सहारे के लिए कुछ रिश्तेदारों का मुँह देखने के अलावा कोई चारा न रहा ,जीतो तो थी ही, एक और कन्या सत्या भी अवतरित हो
गई । सब कहते शक्ल सूरत की खास ना होते हुए भी जीतो बड़ी भागवान है।खाता कमाता वर मिल गया निसन्तान दुहेजू हुआ तो क्या!उधर सत्या की भी शक्ल दिखाई देेने. लगी,दूध सी उजली रंगत,कच्चे खीरे सी पनीली नर्म त्वचा ्गालों पर उतरती कचनार की पंखुरियाँ,प्यारी ,मासूम गुड़िया सी सत्या को देख माँ का हृदय उसके सुखी भविष्य के लिए हर वक्त अंदर ही अंदर प्रार्थना में लीन रहता ।चारों तरफ से अभाव की मार,न ढंग का खाना मयस्सर न चैनोआराम फिर भी बारह बसंत गुजरने से पहले ही सत्या के सौन्दर्य की महक हवाओं में ऐसे घुलने लगी जैसे ताज़े गुलाब की खुशबू,किसी के हृदय में उसे देख ममत्व का सागर लहराता तो कोई ईर्ष्या भी करता,पर कौन नहीं जानता नरव्याघ्र भी तो इसी समाज में पलते हैंं मात्र तेरह वर्ष की सत्या को माँ ने रातों रात चुपचाप पड़ोस के दोगुनी से भी ज्यादा वय के भिक्शु से ब्याह दिया ,इससे पहले कि आश्रयदाता अरब शेख से सौदा मुकम्मल कर पाते..
अपर्ण थपलियाल”रानू”
१.०५.२०१७