रक्षाबंधन
बदलता रहा हूं करवटें कबसे बार-बार,
नज़रें जा टिकती है घड़ी के कांटों पर बार-बार।
कब होगी सुबह कब गुंजेगी चिड़ियों की चहक,
कब छत पर आयेंगी किरणें कब उठेगी पकवानों की महक।
बार _बार दरवाज़े पर नज़रें जा टिकती है,
सब कोई तो दिख जाते हैं पर बहना नहीं दिखती है।
है आज कितना पावन दिन है आज रक्षा बंधन का त्योहार,
जल्दी से आजा ना मेरी गुड़िया सारी खुशियां दूं तुझ पर वार।
आकर मेरी सुनी कलाइयों पर बांध दें बंधन प्यार का,
बंधन जो है प्यार का, विश्वास का, अटूट रिश्तों के एहसास का।
तू जो आती है खुशियों से भर जाता है घर मेरा,
नन्हीं किलकारीयों से गूंज उठता है आंगन सारा।
बांध दें इस बंधन को तू रस्म नहीं दस्तूर है ये,
टल जायेगी हर बाधा मुश्किल, धागा नहीं विश्वास की जंजीर है ये।