रक्तबीज
पढा है कथा कहानियों में सुना है
माँ काली ने रक्तबीज का संहार किया था
गिर रक्त धरा पे ना प्रकट हो पुनः रक्तबीज
काली ने रक्त की बूंद बूंद कंठ में उतारा था
माँ काली से एक बूंद
सिर्फ एक बूंद रक्त
पीना छूट गया होगा
सिर्फ उस एक बूंद से
हजारों रक्तबीज पुनः प्रकट हुए है
जिन्हें होना चाहिए जेलों में
दिखते है गोष्ठी और मुशायरों में
समाजसेवा और राजनीति के गलियारों में
टीवी के चर्चाओं में अखबारों के पन्नो में
जब जब हो रक्तबीज पे प्रहार
रक्त की बूंद टपके धरा पे
होता प्रसार बढ़ता आकार
अपने आकार प्रसार का दम्भ भरते
कुकृत्यों पे अट्टाहास लगाते
कभी जनता का पैसा लूटते
कभी मुर्दों पर भी
राजनीति करने को जुटते
कभी देश की सुरक्षा
खतरों में डालते
जाति में बांट लोग
द्वेष फैलाते फुट डालते
इन रक्तबीजों की कर पहचान
इनका संहार करना होगा
ले काली का रूप धर
इनके बूंद बूंद रक्त पीना होगा