रक्तदान से डर क्यों?
रक्तदान सिर्फ दान या महादान नहीं है
यह मानव मूल्यों का सबसे बड़ा सम्मान है,
जिसकी हम सब पर जिम्मेदारी है
जिसे हम सबको करना चाहिए
मुंह मोड़कर भागने से बचना चाहिए।
बस एक बार यह सोचिए
कि आप ईश्वर तो नहीं
जो बड़े दानदाता बने फिरते हैं,
आप किसी को मौत के मुंह से जाने से रोक सकते हैं
या किसी को जीवन का दान देकर महान बन सकते हैं।
आप कुछ भी नहीं कर सकते
सिर्फ इतना ही कर सकते हैं
किसी की जान बचाने का माध्यम बन
एक छोटा सा प्रयास कर सकते हैं
ऐसा करके आप ईश्वर का दूत बन सकते हैं।
डर लगता है तो बस एक बार
तनिक इतना भर सोच लीजिए
कि उसकी जगह पर आप स्वयं
या आपका अपना भी तो कोई हो सकता है,
तब आप भी वैसे ही व्यथित होते
दर दर भटक रहे होते
एक एक बूंद रक्त की भीख मांग रहे होते
मौत को अपने सामने देखकर भी
खुद को बेबस, लाचार, असहाय पाते।
तब क्या आप खुद ही खुदा बन पाते?
नहीं न, फिर आज इतना विचार क्यों नहीं करते?
अपनी मानवीय जिम्मेदारी मुँह क्यों चुराते?
किसी अनजान प्राण के लिए
रक्त का दान क्यों नहीं करते?
रक्तदान महादान का उपहास उड़ाकर
किसी की मौत का बोझ अपने सिर लेने से
आखिर क्यों नहीं सिहरते और काँप जाते?
रक्तदान का महादान करने में
आप सबसे पीछे की लाइन में क्यों खड़े होते?
रक्तदान से आखिर क्यों इतना डरते?
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश