रंग रंगीला फ़ाग
***** रंग रंगीला फ़ाग *****
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होली के बाद आता है फ़ाग,
छिड़े है फागुन फाल्गुनी राग।
रंगों की गिरती है बौछारें,
तन मन मे लगा देता है आग।
देवर पीछे भागती भोजाई,
आ जाती है झट मुँह से झाग।
छोटे बड़ों की बनती टोलियाँ,
लगें जैसे काले पीले नाग।
गिले शिकवे जाते हैं धूल,
रास रंग संग जाते हैं जाग।
उड़ रहें हैं चारों तरफ गुलाल,
गिरती है साफ वस्त्रों पर गाज।
फंस जाए जो बीच मंझदार,
हरा भरा हो जाता सूखा बाग।
लाल,पीले, गुलाबी होते गाल,
रंग दिखाता है रंगीला फ़ाग।
मनसीरत चेहरे जाते हैं खिल,
मक्की रोटी संग खाए साग।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)