रंग मेकशो का वही मिलेगा
रंग मैकशों का वही मिलेगा आ जाना मेरे शराबख़ाने में
मुझकों बख्स देना थोड़ी बादशाही हमनवां तू जमाने में
मेरी शोखियॉ की शराब पीना तू चुरा कर नेकनियत से
मयकदे में आने वाले तू जी भर के पीना मेरे पैमाने में
अच्छी हो या बुरी चीज़ शराब नशा करलें एक बार तो
अंगूर की बेटी नही हुई है नियत ख़राब कभी मैखाने में
है रिवाज पिने से पहले दो बून्द ख़ुदा के नाम चढ़ा देना
फिर बिंदी लगा हर शराबी के माथे पर बोतल हिलाने में
जा दुआ देता हूँ काबो में तुझको कभी ख़ुदा ना मिले
बस तू जाम पर जाम पिए जाए और जाए बुतखाने में
हम भी पिए और तू भी पिलाएं तमाम रात अशोक को
कलम तौबा कर आग लगा देगी क्या तू फिर मैखाने में
क्या तुझको पता काबा बनाने में रख आये खिश्तें खुम
हम को भी हो जाएगा थोडा नशा फिर काबा बनाने में
उठ जाएंगे आज पुजारी भी यह कह कह बुतखानो से
ख़ुदा भी खुद जाता है कमर सीधी करने मयखानों में
अशोक को अक्सर याद आती मैंखानो की वो बरसात
जहाँ शराब भी पीनी पड़ जाये मय पर गजल बनाने में