रंग भरें
रंग भरें
—————
आओ बसंत
रंग भरें
प्रकृति में
तुम्हारी इस कूची से
पृथ्वी के कैनवस पर
रंग भरें
हरियाली भरें
ठिठुरती सर्दी में
देखो तो सरसों
पीली पीली
झूम रही है
कोयल आम के
शीर्ष पर बैठी
सुर सजा रही है
गेहूं की हर बाली
सुनहरी होने जा रही
गौरया बैठी
दाना चुग रही
गुलाब की
महक कुञ्ज कालिंदी
छा रही
बसंत तुम्हारा अभिनंदन
————
राजेश’ललित’