रंग-बिरंगी होली (कवित छंद)
(1)
रंगों की ले पिचकारी,होली खेलें नर-नारी,
इक-दूजे पीछे दौड़े,अंग-अंग जोश है।
जोकर लगते सारे,फिर भी हैं प्यारे-प्यारे,
भेद नहीं है मन में,मन मदहोश है।
रंगों से रिश्ते हैं खिले,प्रेम लिए सभी मिले,
हँसी ख़ुशी उल्लास है,तन में प्रकाश है।
ढ़ोल नगाड़े बजते,नाचें सारे हैं खिलते,
इंद्रधनुषी नज़ारा,जोशीला उद्घोष है।
(2)
भाँति-भाँति के रंगों का,मन उठी उमंगों का,
देखा सुंदर मेल है,होली प्रेम खेल है।
बुरा भाई मत मानो,भौहें भी ना तुम तानों,
प्रेम अबीर लगाया,जाना तालमेल है।
खिल जाओ जी रंगों से,खिल जाओ जी अंगों से।
खिलती जैसे आँगन,फूलों से रे बेल है।
फागुन मास मस्ती में,झूमो गाओ रे मस्ती में,
वर्ष में आती है होली,लाती अठखेल है।
–आर.एस.प्रीतम