रंग फितरत के
रंग फितरत के
फितरत पानी की बहते रहना
फूलों की महकते रहना
पत्तियों का लहराते रहना
चिडियों की चहकते रहना ।
प्रकृति है छटा बिखराती
पावन वर्षा प्यास बुझाती
तितली सुन्दर रंग समाती
कोयल मीठा गान सुनाती ।
जल नदिया का कलकल करता
झरना शीतल झर झर करता
लहरें टकराती सागर तट से
गहरा जल सागर ठाठें भरता।
नभ में पक्षी विचरण करते
वन में मृग खग मिल कर रहते
जल देता मछली को जीवन
कैसा दृश्य है मन भावन।
कुदरत का देखो ये मेल
इंसां मिल के खेले खेल
बिना स्वार्थ के काम न कोई
प्यार में भी मतलब है तो ही ।
ये जग है
विविधता का खजाना
बदलता है हरदम
ये जालिम जमाना
कल जो अपना था
आज हुआ बेगाना
वाह ये कुदरत
वाह ये जमाना ।
भाई का भाई हुआ आज दुश्मन
स्वार्थ की दुनिया में भटका हुआ मन
अपनों को पैरों तले रोंद कर भी
सब्र न कर पाता मन अपावन ।
फितरत बदलती है इंसान की यूं
मौसम का रूख जैसे बदले धरा पे
कल थे जो अपनी जां से भी प्यारे
भाए न पल भी नजर से गिरा दें।
विनीता नरूला
रिटायर्ड प्राचार्या
के वि एस