रंग जाओ
रंग जाओं
ओ माई … ओ माई … ओ माई …
उस मासूम ने मुरझा हुआ चेहरा लेकर
व भुख से व्याकुल होकर लगातार
आवाज़ दे रहा था ।
घर के अन्दर से आवाज़ आयी
कौन हैं रे …
किसी भी टाईम पर टपकते ही रहते हैं …
मन ही मन सोच रही थी , इस महानगर में
सबका स्वागत हैं
यहाँ पर जो भी आता हैं , अपनी-अपनी
किस्मत की खाता हैं
स्टार बनने का स्वप्न देखता हैं ,
जीवन अपने पैरो पर जीता हैं
वहीं ” मुकद्दर का सिंकद्दर ” कहलाता हैं
कहाँ से आया हैं ?
कौन हैं ?
क्या हैं ?
मुझे नहीं चाहिए जानकारी
बस तू “भारत” हैं ,
भारतीय बनकर रहना हैं
भाईगिरी , दादागिरी , गुंडागर्दी
करना नहीं
गंदगी फैलाना नहीं
ये महानगर तो क्या , यह जग आपका
हैं नन्हें प्यारे …
जहाँ रहना हैं , काम करना हैं ,खाना हैं
उसमें रंग जाओ और “एकता” से रहों
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– राजू गजभिये