रंगमंचीय पात्र
हां मैं लाश हूं,
चुप और हृदयहीन
ना बेबस हूं न मजबूर
न हंसता हूं न रोता हूं।
क्योंकि संवेदना मर गई है,
अनुभूतियां मैंने विदा कर दी है,
मैं देखता हूं मित्रों के आंसू ,
मैं सुनता हूं स्वजनों की चीख।
प्रशंसा और उपहास,
मित्रों की संवेदना सहानुभूति,
शत्रुओं की हास्य मनोहार,
हां मेरी मृत्यु पर।
श्मशान और कब्र
दोनों बराबर हैं,
एक में लकड़ियों की बोझ,
दूसरे मिट्टी की भार,
तन मन को थका देती है
और लाश को अकेले छोड़
सबका घर की और लौट जाना।
दुनिया की हाल बता देती हैं,
कि मृत्यु अटल सत्य है,
बाकी सब रंगमंचीय पात्र हैं।