यौवन का चिन्तन करती
यौवन का चिन्तन करती
आज दशों दिशाएं भी ।।
उत्कृष्ट राष्ट्र को जीवित रखती
ज्ञान यज्ञ की शाला ही ।।1।।
उठता रहे सूरज का तप भी
ज्वलित रहे चेतना सब की ।।
प्राण मोह का बन्धन तोड़े
ऐसे वीर से धरती सजती ।।2।।
फिर धरा बसंत भर जाएं
प्रेम पुष्प प्रफूलिता में गाए ।।
यौवन भरत सा तेज होगा
फिर जन का स्वर गुंजन होगा ।।3।।
पर्वत श्रृंखला जब टूटेगी
नीर नदी की भी सूखेगी ।।
किंतु राष्ट्र के पथिक वीरों से
ये धरा महकती ही रहेगी ।।4।।