ये हवाएं ये फ़िज़ाये ।
ये हवाएं ये फ़िज़ाये,
जो तुझें छू कर मस्त मगन हो जाती है ।
मुझसे टकरा कर ये,
तेरे होने का एहसास दिलाती है,
तन्हा होकर भी हम अकेले नही होते,
तेरी खुसबू से मेरी रूह महक जाती है,
ये हवाएं ये फ़िज़ाये,
जो तुझें छू कर मस्त मगन हो जाती है ।
तू जो नही कहती लबों से अपनी,
तेरा वो इश्क़ ज़ाहिर,
ये मुझसे कर जाती है,
ये हवाएं ये फ़िज़ाये,
जो तुझें छू कर मस्त मगन हो जाती है ।
दीपक ‘पटेल’