ये सियासत…
आग ठण्डी पड़ी थी फिर से लगाने आयी
ये सियासत सभी की नींद चुराने आयी
ये सियासत हमें आपस में लड़ा देती है
गाँव जलने लगा तो अक्ल ठिकाने आयी
एक सदमा जिसे बस भूलना चाहा मैंने
उसकी फिर याद मेरे दिल को दुखाने आयी
ये तो आती है सितम हर किसी का हरने को
फिर क्यूँ आयी तो ये सरकार सताने आयी
वोट लेकर न वे ‘आकाश’ अभी लौटे हैं
किंतु महँगाई हमें रोज रुलाने आयी
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 20/11/2021
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मापनी- 2122 1122 1122 22