* ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है ? *
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ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
हम आज ख़ुद-ब-खुद छले जा रहे हैं
पाते संस्कार शाला-परिवार पा रहे हैं
सुसंस्कार – कारखाने कहां जा रहे हैं।।
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ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
हर व्यक्ति व्यक्तिगत-स्वार्थ जा रहे हैं
कहां समूह-स्वार्थ-अर्थ अब पा रहे हैं
अनजाने-सी कौन-डगर पर जा रहे हैं ।।
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ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
कर्म-पथ करते अगर-मगर जा रहे हैं
जी-ते नहीं,जिंदा अपने को पा रहे हैं
संस्कार मानवता को खाये जा रहे हैं।।
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ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
कु- सु अब अपनी कहां निभा रहे है
भेद करले क्या कोई अभेद पा रहे है
जाने कौन- दिशा अब हम जा रहे हैं।।
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ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
शिक्षा-संस्कार ख़ुद-ब-खुद जा रहे हैं
हम संस्कारों को नहीं निभा पा रहे हैं
आंख-मूंद चल गहरे- गह्वर जा रहे हैं।।
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ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
सीख मिली जो हमें क्या निभा रहे हैं
वही सीख-संस्कार ना हम दे पा रहे हैं
दोष दें किसको अपनी ही कमा रहे हैं।।
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कभी घर भी घर हुआ करता था अपना
आज घर- घर आवाजें बहुत है पर -पर
ख़ुद समझ पाते लोग पहले समझ जाते हैं
आज घर सिर्फ मकान बन कर रह गया है।।
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जो कभी थकान दूर करता था अपनी वह
मकान सिर्फ मकान बनकर रह गया अब
संस्कार शालाएं थी दुकान बन रह गयी है
आज घर मकान , शाला धर्मशाला बनी है।।
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आपस मे तनातनी मन में अनमनी है
ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है
मुहब्बत के बीज आज ग़ुम हो गये हैं
नित-रोज नफ़रत बीज बोए जा रहे हैं ।।
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हम खोए जा रहे हैं बोए बीज नफ़रत
आज वही तो फिर-फिर हम पा रहे हैं
ना जाने हम किस डगर पर जा रहे हैं
ये संस्कार आज कहाँ चले जा रहे है ।।
💐मधुप “बैरागी”