ये वादियों में महकती धुंध, जब साँसों को सहलाती है।
ये वादियों में महकती धुंध, जब साँसों को सहलाती है,
यादों के बंद कमरों की, चाभियाँ ढूंढ लाती है।
हवाएं मीठी ठंड की शिरकतों से, मोहब्बत जो जगाती है,
वो पहली मुलाक़ात की बेचैनियां, फिजाओं में छा जाती है।
ये बादलों की अठखेलियां, जो बर्फ़ीले पहाड़ों से टकराती है,
बहकी बारिशों की छुअन से, ये रूह पिघल सी जाती है।
ऊँचे दरख्तों की सादगी जो, नजरों को सहलाती है,
तेरी मुस्कराहटों की गर्माहटों को, मेरे हाथों तक पहुंचाती है।
ये सुस्त रास्ते जो घुमावदार मोड़ों की, कहानियां मुझे सुनाती है,
कुछ अधूरे वादों की कसक से, धड़कनों को तड़पा जाती है।
ये फूलों की क्यारियां ज़िन्दगी को नए रंगों से तो मिलवाती हैं,
पर बीते लम्हों की वो सफ़ेद चादर, मुझे तुझतक हीं तो लाती है।
ये घने जंगलों की खामोशी, मेरी अनकही समझ जाती है,
तभी तो मेरी रूह की चीख़ों पर, ये मरहमों को लगाती है।
अब इनसे बिछड़ने का ख़्याल, मेरी नीदों को चुरा जाती है,
पर मुसाफ़िर के शख्सियत को, ये नींदें कहाँ भाती है।