ये मेरी मर्जी थी
ये मेरी मर्जी थी
नाम तेरे एक अर्जी थी
रात के सिरहाने में
तेरे दिलकश तराने में
डूब जाने की
जाने मुझ में कैसी खुदगर्जी थी
आंचल में टांका था चांद को मैंने
दांतों में रातों के कोर दबाए थे
न तुम आये, न नज़्म को भेजा
दिल के बज़्म में मेरे
क्या सारे अर्जी फर्जी थी…
… पुर्दिल