ये मन्ज़र सफ़र के बदलते रहेंगे
ये मन्ज़र सफ़र के बदलते रहेंगे
मगर हम मुसाफ़िर हैं चलते रहेंगे
बुझाना भी चाहे ज़माने की आँधी
मगर आस के दीप जलते रहेंगे
भले पत्थरों की हो बारिश हमेशा
शजर जो फले हैं वो फलते रहेंगे
अमीरों को किसने दिया हक़ ये बेजा
के मज़लूम को ये कुचलते रहेंगे
यही देखना जो पले आस्तीं में
कहाँ तक छलेंगे वो छलते रहेंगे
जिन्होंने किया क़त्ल इन्सानियत का
वो पक्का नरक में ही जलते रहेंगे
कहीं नफ़रतों का अंधेरा न होगा
मुहब्बत के सूरज निकलते रहेंगे
कभी तो मिलेगी हमें सच की मंज़िल
सदा सच के रस्ते पे चलते रहेंगे
अगर रास्तों पर कहीं गिर भी जायें
तो ‘आनन्द’ ख़ुद ही संभलते रहेंगे
– डॉ आनन्द किशोर