ये नववर्ष का उल्लास है कैसा…
हो गयी फिर सुबह…
पंछियों ने गाना गाया..
भौंरे की गुनगुन सुन
फिर हर फूल मुस्काया…
साल बदला कुछ यूं जैसे,
बस एक कैलेंडर बदलने जैसा…
पर कुछ आँगन मेँ नही हुआ सवेरा….
अपने शहीदों से फिर रक्तरंजित हुई धरा…
फिर कैसे उल्लास मनाएं..
फिर कैसे कोई गीत सुनाएं..
मौन क्रंदन करती भारतमाता..
आँखे बन्द किये बैठे हैं
देश के भाग्यविधाता..
आज फिर तिरंगे में लिपटा,
घर आया कोई पिता, भाई या बेटा…
ये नववर्ष का उल्लास है कैसा….
ये नववर्ष का उल्लास है कैसा..
…….अमृता मिश्रा