**ये दुनिया छल की नगरिया**
ये दुनिया छल की नगरिया
यहाँ सब का अलग नज़रिया।
हर चीज़ का यहाँ पर दाम है
ये दुनिया महँगी बजरिया।
यहाँ सब मुसाफ़िर इसके हैं
संघर्ष में सब पिसते हैं।
हैं ये काँटों से भरी डगरिया।
ये दुनिया छल की नगरिया।
ग़ैरों के भेष में बैठा यहाँ
पर हर अपना है छलिया।
जरा सँभल कर चल सँवरिया
ये दुनिया छल की नगरिया।
कवि वि के विराज़