ये दुनिया कितनी नश्वर है
विषय… ये दुनिया कितनी नश्वर है
दिनांक… 20/ 12/ 2020
दिन….. रविवार
……….. गीत
भाग रहा है किसके पीछे
जो कुछ है बस ईश्वर है
जोड़ -तोड़ कर ले कितना ही
यहां सभी कुछ तो नश्वर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है….
ये सारा जग भी नश्वर है
ये सारा तन भी नश्वर है
कुछ नहीं जिसे अपना बोलें
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
रिश्ते- नाते नहीं किसी के
सुख-दुख साथ रहें सभी के
किसके खातिर छीना- झपटी
किसके लिए हाथों में नश्तर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
सदा यहां रहना ना किसी को
जिसका है दे सब तू उसी को
सांस टूटते सब रह जाता
साथ नहीं जाता बिस्तर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
जिंदा बस सच रहे हमेशा
सोच बीज बोया है कैसा
जो दुनिया को देता तन -मन
वो ही बनता सच में रहवर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
छल- कपट सब छोड़- छाड़ दे
मन की तृष्णा को मार दे
बांट हमेशा प्रेम भाव तू
ये ही सच सबसे बेहतर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
खाली आए खाली जाओगे
पाप करोगे क्या पाओगे
मानव हो ना भूल इसे तू
तेरे अंदर भी ईश्वर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है…
मिट्टी का ये बदन है सारा
कहता है कबीर का इकतारा
सागर बहक ना देख के चुपड़ी
कहते खाली टीन- कनस्तर है
ये दुनिया कितनी नश्वर है!!
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गीत के मूल रचनाकार
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
हापुड़, उत्तर प्रदेश