ये दुनिया इश्क़ को, अनगिनत नामों से बुलाती है, उसकी पाकीज़गी के फ़ैसले, भी खुद हीं सुना जाती है।
कुछ इल्तेजायें, आख़री पन्नों तक गुनगुनाती हैं,
अपनी क़िस्मत, को हर पड़ाव पर आज़माती हैं।
कभी रूह को, सुकून की नज़र कर जाती हैं,
तो कभी हर एहसास को, खाक में मिला आती है।
अंधेरी रातों में, खुद के साये को ये भूलाती है,
और कभी जुगनू की रौशनी में, साँसों को जीवंत कर जाती है।
सफर में अपने अस्तित्व को, खोया हुआ ये पाती है,
तो कभी किसी मोड़ पे, खुद से खुद की पहचान करा कर आती है।
ये दुनिया इश्क़ को, अनगिनत नामों से बुलाती है,
उसकी पाकीज़गी के फ़ैसले, भी खुद हीं सुना जाती है।
तोहमतें लगा, उसकी मासूमियत को ये छल जाती हैं,
ये क़ायनात भी तो उन्हीं के ख़िलाफ़, साज़िशों की लड़ी लगाती है।
पर सजदे में, इश्क़ की दुआएं जब रंग लाती हैं,
आसमां पे दो नामों को एक साथ लिख के जाती हैं।