ये तेरा क़र्ज़ है तो क़र्ज़ उतर जायेगा
आसमा छूने जो निकलेगा तो मर जाएगा
तू परिन्दा है हवाओं में बिखर जाएगा
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जिसने चाहा है तुझे जान से बढकर जाना
क्या तेरी बज़्म से वो दीदा ए तर जाएगा
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दिल मे उठता है तेरा दर्द तक़ाज़ा बन कर
ये तेरा क़र्ज़ है तो क़र्ज़ उतर जाएगा
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सांस आयेगी थके हारे मुसाफ़िर जैसी
जब मुझे छोड के तन्हा तू गुज़र जाएगा
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तुझको मालूम नहीं नाज़ उठाने वाले
तू किसी रोज़ निगाहों से उतर जाएगा
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रात आयेगी क़यामत की ठहर जायेगी
दिन निकलेगा खुशी का तो गुज़र जाएगा
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ग़ैर मुम्किन है सित्म दिल पे न ढाये सालिब
ऐन मुम्किन है वो वादे से मुकर जाएगा
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सालिब चन्दियानवी