ये जीवन है चंद वर्षों की
ये जीवन है चंद वर्षों की ,
फ़िक्र में क्यूँ इसे गुज़ारूँ मैं,
हक़ीक़त से रु-ब-रु होकर,
क्यूँ न हर पल इसे सँवारू मैं।
कर्मों को निखार करके ही ,
ये जीवन सँवारता हूँ मैं ,
उदासी को मारकर ठोकर ,
यूँ ही जीवन गुज़ारता हूँ मैं ।
अपनी उपलब्धियों पर भी ,
कभी नहीं ग़ुरूर करता मैं ,
बड़े ही हो या चाहे छोटे हों ,
हमेशा अदब से मिलता मैं।
प्रेम इंसानियत का दर्पण है,
इसकी किरणें बिखेरते जाओ,
दिलों को जोड़कर के ही ,
अब इबादत तुम किए जाओ।