ये जिंदगी ना हंस रही है।
दिखने में यूं तो हंस रहे है पर रूह हमारी रो रही है।
ढेरों खरीद ली खुशियां पर ये जिंदगी ना हंस रही है।।1।।
जाने कैसा यह गणित है अब तुम ही बताओ लोगो।
उम्र तो बढ़ रही है पर ये जिंदगी क्यूं कम हो रही है।।2।।
पतझड़ के दरख़्त सा बिल्कुल हाल हुआ है हमारा।
जमीं पर तो खड़े है पर शाख से पत्तियां गिर रही है।।3।।
जिन्दगी भी खुशी और गम के मझधार में फंसी है।
साहिल को कैसे पहुंचे कश्ती जब लहरे उठ रही है।।4।।
कोशिश तो बहुत की कि हंस कर बिताए हम वक्त।
दिल को कैसे खुश रखे जब जिन्दगी गम दे रही है।।5।।
नज़रों को फिर मन्जर दिखा उठते हुए जनाजे का।
मौत का दामन थामें जिन्दगी तुरबत को जा रही है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ