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18 Jan 2022 · 1 min read

ये कैसा मौसम आया

ये कैसा मौसम आया ,
कैसी हवा चल रही
दीये तो दीये सायक
दिलों की लौ बुझ रही ।

नफरत के बीज पनप रहे
सम्बन्धों की जड़ें हिल रहीं
धर्म जाति के वृक्ष तले
खुलेआम महफिलें खिल रहीं ।

लहू गर्म हो गया है इतना
अस्मत दिन ब दिन लुट रही
न्यायालय सूखा कुआँ हुआ
प्यास नही अब यहाँ बुझ रही

ये कैसा मौसम आया
कैसी हवा चल रही
दीये तो दीये सायक
दिलों की लौ बुझ रही ।

-जय श्री सैनी ‘सायक’

Language: Hindi
282 Views
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