ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव (युधिष्ठर संताप )
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव,अपनों का संहार हुआ
अपनों के हथियार चले,अपनों पे अत्याचार हुआ
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव………
पूत पिता पितामह खोए,खोया है रिश्ते नातों को
भाई बंधू व शौहर खोए,खोया सब जज्बातों को
धोखे,छल और कपट का,देखो तो व्यवहार हुआ
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव………
जिधर देखिए लाश पड़ी हैं,देखो ये चित्कार सुनो
जीत की जयजयकार नहीं,हो रही हाहाकार सुनो
योद्धाओं को दुर्योधन ले गया,सूना है दरबार हुआ
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव……….
पाण्डव जेष्ठ कर्ण खो दिए,अभिमन्यू से लाल गए
पितामह सी दीवार ढ़ह गई,गुरू द्रोण सी ढ़ाल गए
घर-घर से गए रण-बांकुरे, निर्दोषो पर प्रहार हुआ
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव……….
नहीं चाहिए केशव ऐसा,रक्तरंजित वह ताज सुनो
जी करता यहीं मर जाऊँ,आती मुझको लाज सुनो
टूट गया हूँ बिखर गया हूँ,इतना अब लाचार हुआ
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव………..
कैसे चलूँ महलों में केशव,भरा हूँ आत्मग्लानी से
कैसे पहनूं ताज कहो,ये मिला अपनों की हानी से
‘विनोद’कहे मैं जीत के हारा,मन ऐसे बेजार हुआ
ये कैसा धर्मयुद्ध है केशव………