ये कैसा दौगलापन
ये सेवा भाव हमारा ,
है कैसी संवेदना तुम्हारी,
मरते हैं हम दम घुटकर,
उस पर राजनीति तुम्हारी।
न करते साफ़ हृदय व अंतर्मन को,
तो कैसे साफ़ रखोगे अपने तन को ।
दिया है कर्म का ठेका तुमने हमको,
तो आप यूँ ही खा लोगे मेरे जीवन को ।।
रखें हम इस चमन को सुंदर,
अपनी काया और तन से ज़्यादा ।
फ़िर मिलता क्यूँ दुत्कार सदा ,
सभ्य समाज में दुर्दान्त अपराधी जैसा ।।
हो जाते हैं अलग रास्ते भी गुज़रने के,
जैसे छूटती हो धूल हमारे पैरों से ।
फ़िर भी शादी और शुभ अवसर पर,
करवाते हैं सारे काम बुढारने के ।।
होती न इनकी नीची जाति,
हमसे नीचा कार्य कराने में ।
अपने धर्म-संस्कारों में रखते हैं,
ऊँच-नीच का फ़र्क सदा ।।
झेला है हमने दर्द यहाँ सदियों से,
इनकी करतूतों का ।
फ़िर आज इन्हें कैसे हज़्म ये होगा ,
बहुजन के बिंदास जीने का ।।
रूढ़ परंपराओं ने हमको,
मकड़जाल में जकड़ लिया ।
हम भूल गए अपने पूर्वजों को,
इनके बे-ढंगे रिवाज़ों को अपना लिया ।।
भूले हम अपनी संस्कृति,
बलिदान वीर माताभंगी का भुला दिया ।
कर गुणगान झूट के पुलिंदों का,
त्याग सावित्री फुले-रमा का भूला दिया ।।
धर्म कर्म या अपने संस्कार,
सभी को हमने ठुकराया हैं ।
प्रवेश करें बिन परमीशन ,
फ़िर क्यूँ तूने मुखड़ा मुरझाया है ।।
जीते जी सम्मान करें न,
पत्थर को भोग लगाते हैं ।
घर में रहें भूखे मात-पिता,
मन्दिरों में जाकर दान करें ।।
“आघात” ये कैसा दौगलापन,
दौगली बनी ज़िन्दगी है ।
स्वधर्म वापसी कर लो तुम,
द्विग हाथ जोड़ मैं करूँ विनती है ।।
@ आर एस बौद्ध “आघात”
8475001921