* ये काशी है *
अनादि काल से अपने अन्दर कई खूबियों को समेटे हुए,
ये शहर है काशी ।
शायद कभी बहुत प्रसन्न हुए होगें महादेव
तब उन्होंने निर्माण किया होगा काशी का।।
अपने धीरे रफ्तार में,अनगिनत रूपों को अन्तर्भुक्त कर रखा है इस शहर ने।
सुबह का शंख भी है,पूजा का मंत्र भी है,
दुखों का अंत भी है इस शहर में ।।
भोले ने खुद की कुछ खूबियों को,यहां के लोगों को दिया होगा।
तभी तो यहां कुछ अक्खड़ हैं,कुछ फक्कड़ हैं,
कुछ मस्त हैं और कुछ लोग विरक्त हैं।।
लोक और परलोक एक साथ दोनों रूपों का दर्शन होता है यहां।
घाट की सीढ़ियों पर एक तरफ़ लोगों में जीवन जीने का उमंग।तो दूसरी तरफ़ चिताएं जलती हुई,परलोक में मिलता उसका अस्तित्व।।
अनेक कलाओं की राजधानी,कबीर की बानी,
रैदास की कहानी, तुलसी का मानस,सबकी कर्मस्थली यही है
क्योंकि यह काशी है।
और यहां की धारा अनेक प्रतिभाएं उपजाती है ।।
भारतेंदु के नाटक, बिस्मिल्ला खा का शहनाई वादन,नृत्य की पाठशाला ।
जहां की प्रतिभाएं बजा आई है डंका विश्व में।
ऐसी है विश्वनाथ की नगरी ।
जिसे हम प्रेम से कहते है,काशी या बनारस या वाराणसी।।
यहां जीवन धीरे – धीरे चलता है ।
जैसे शिव ने जीवन जीने की कला यहां की धरती को, वरदान में दिया हो ।।
जैसे यहां की सकरी गलियों में बिछड़ जाते हैं लोग।
वैसे ही यहां लोग,पूरी दुनियां से अलग अपनी मस्ती में जीते हैं अपना जीवन ।।
दुनियां को जानकर भी वो अनजान हैं,और जी रहें हैं अपनी दुनियां,जो मिलती है सिर्फ काशी में।।
चिताओं के भस्म को शिव लगाते हैं।
शायद इसीलिए यहां चिताएं हर समय जलती रहती हैं।।
और जो भस्म रह जाता है वह बचता नहीं ,
विलीन हो जाता है वो अनंत में ।
शायद यहीं से जाती है , भस्म शिव के लिए ।।
✍️ प्रियंक उपाध्याय