ये काबा ये काशी हरम देखते हैं
ये काबा ये काशी हरम देखते हैं
कि अपना ख़ुदा तुझमें हम देखते हैं
ज़माने के सब ख़ूबसूरत नज़ारे
तुम्हारी निगाहों से हम देखते हैं
ग़ज़ल ले रही है नयी एक करवट
ये ‘दुष्यंत’ ‘ग़ालिब’ ‘अदम’ देखते है
नज़ीर नज़र
ये काबा ये काशी हरम देखते हैं
कि अपना ख़ुदा तुझमें हम देखते हैं
ज़माने के सब ख़ूबसूरत नज़ारे
तुम्हारी निगाहों से हम देखते हैं
ग़ज़ल ले रही है नयी एक करवट
ये ‘दुष्यंत’ ‘ग़ालिब’ ‘अदम’ देखते है
नज़ीर नज़र