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14 Feb 2017 · 1 min read

ये कहाँ से आ गयी बहार है

ये कहाँ से
आ गयी बहार है,
बंद तो
मेरी गली का द्वार है।

ख़्वाहिशें टकरा के
चूर हो गयीं,
हसरतों का दर्द
अभी उधार है।

नफ़रतों के तीर
छलनी कर गए ज़िगर ,
वक़्त लाएगा मरहम
जिसका इंतज़ार है।

बदल गए हैं
इश्क़ के अंदाज़ अब,
उल्फतों का
सज गया बाज़ार है।

अरमान बिखर जाएँ तो
संभाल लेना दिल,
छीनता है एक
वो देता हज़ार है।

टूटते हैं रोज़-रोज़
तारे आसमान में,
“रवीन्द्र ” को तो
ज़िन्दगी से प्यार है।

– रवीन्द्र सिंह यादव

यह रचना मेरे यू ट्यूब चैनल( मेरे शब्द–स्वर) पर उपलब्ध है.

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 274 Views
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