ये कमाल हिन्दोस्ताँ का है
ताज़ीम आरती की है आदर अज़ाँ का है
दुनिया में ये कमाल तो हिन्दोस्ताँ का है
गंदी सियासतों ने बहारों को खा लिया
मौसम हमारे गांव में भी अब खज़ाँ का है
नाहक ही दुश्मनों को यह इल्जाम दे दिया
गुलशन उजाड़ने का जतन बाग़बाँ का है
तुम ज़लज़लों के खौफ से वाक़िफ़ नहीं रहे
इतना ग़ुरूर आज यह ऊँचे मकाँ का है
आंखों को क्या शऊर किसी की नहीं रहा
दुनिया में हर शिकार तुम्हारी कमाँ का है
उनवान जो हमारी कहानी का था कभी
किरदार अब वह और किसी दास्ताँ का है
होता है फैज़याब जहाँ से जहान सब
‘सुनते हैं वो मकान किसी ला मकाँ का है’
‘अरशद’ नहीं है कोई गिला गैर से हमें
गद्दार है तो कोई इसी कारवाँ का है