ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें,
ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें,
इस धरा के होते गर्व सदैव,
अमूल्य धरोहर जग के प्राणियों का,
मानव का विशेष प्राकृत धन है।
ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें,
बनते रक्षक और बनाते संतुलन हैं,
घने वनों को देते संरक्षण,
औषधियों को सुरक्षित करते हैं।
ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें,
मानव का बहुमूल्य स्रोत,
पत्थर ,धातु ,बहुमूल्य लकड़ियाँ,
बिन इनके न पनपते हैं।
ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें,
दुरुपयोग और खनन ना बढ़ाओ,
शीश ना गिराओ इसका धरा पर,
निर्माण हुआ जो सहस्त्र युगों में।
ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें,
काबू मे रख अपने तू मन को,
ध्वस्त न कर सुन्दर प्राकृति को,
जागो और समझो अर्थ को ।
ये ऊँचे–ऊँचे पर्वत शिखरें,
स्वार्थ अपना इतना ना बढ़ाओ,
जीवन होगा अस्त व्यस्त नहीं तो,
भू मंडल डोलेंगे देंगे कर्मो का फल।
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।