ये उम्मीद की रौशनी, बुझे दीपों को रौशन कर जातीं हैं।
क़ायनात की साजिशें कुछ यूँ भी रंग लातीं हैं,
की किसी अपने का साथ, मिटा कर चली जाती हैं।
वादे तोड़ने की कोशिशों में, जब नाक़ाम हो जातीं हैं,
तो सांसें चुराकर, बेख़ौफ़ मुस्कुराती हैं।
हंसती आँखों के सपनों को, बेवक़्त रौंद जातीं हैं,
और जीवन को स्याह रातों के, दलदल में छोड़ आतीं हैं।
रौशनी की आस में, नये अंधेरों में भटक जातीं हैं,
और फिर ज़िन्दगी, ज़िन्दगी के नाम से भी ख़ौफ़ खाती है।
उम्मीद की अंतिम डोर भी, जब आँखें चुरा कर चली जातीं हैं,
बस उसी पल वो आवाज़, हर बंधन तोड़ कानों में गूंज जाती है।
तेरी आँखों से हीं तो मेरी, सोई आँखें दुनिया देख पातीं हैं,
और तेरी मुस्कुराहटें, मेरे वज़ूद को ज़िंदा कर जातीं हैं।
क्यों मेरी यादें, तुम्हें इतना रुलाकर जातीं हैं,
जबकि मेरी सांसें तो, तेरी साँसों में हीं घुलकर जिये जातीं हैं।
ये उम्मीद की रौशनी बुझे दीपों को रौशन कर जातीं हैं,
और ज़िन्दगी को एक बार, फिर से जीने को आतुर हो जाती है।