*ये उन दिनो की बात है*
यह उन दिनों की बात है
बचपन में जब हम खेलते कूदते मस्ती करते।
भाई बहनों संग कभी लड़ते झगड़ते फिर एक हो जाते।
पढ़ते लिखते माँ के संग मिलजुलकर हाथ बंटाते।
रिश्तेदारों के आवभगत ,घर को सजाते संवारते जाते।
सारी खवाहिश पूरी कर हर फरमाइश की चीजें पापा लाके देते।
माता पिता की लाडली पांच भाई बहनों की दीदी बन रौब जमाते।
सपनों की दुनिया से निकल अब हकीकत में जिम्मेदारी निभाते।
रीति रिवाजों परम्पराओं को निभा परिणय सूत्र में बंध जाते।
शादी विवाह के बाद रिश्तेदारी सम्बंध निभाते जाते।
विदाई के उन पलों को सहेज कर बाबुल का आंगन यादों में खो जाते।
सुखी जीवन परिवार की जिम्मेदारी सौंपी उस फर्ज को निभाते।
सुख दुख ताउम्र बेटा बेटी नाती पोते संग खुशहाल जिंदगी बिताते जाते।
कुछ कहते कुछ सुनते यूँ ही अल्हड़ मस्त हो उन बीते हुए यादों में खो जाते।
कभी हँसते हुए कभी रोते बिलखते हुए अश्रु धारा आंखों से बहाते जाते।
यह उन दिनों की बात है.!
शशिकला व्यास